Pausha Putrada Ekadashi is a special Ekadashi observed in the Hindu lunar calendar during the Pausha month (December-January). It holds particular significance for those seeking progeny (children) and is observed with devotion and fasting.
In Sanskrit, Ekadashi means eleven. According to the Hindu calendar, Ekadashi is the eleventh day of the two lunar cycles of the moon, after a new and full moon. On this auspicious day, the devotees of the Hindu god of preservation, Vishnu, go on a fast, offer prayers and chant mantras of praises.
Pausha Putrada Ekadashi is a significant Hindu fasting day observed on the 11th day (Ekadashi) of the waxing moon phase in the lunar month of Pausha (December-January). This Ekadashi is primarily dedicated to Lord Vishnu, and it is believed to bestow blessings for progeny, especially to those desiring a male child, hence the name “Putrada” which means “giver of sons.” The fast starts from the dawn of Ekadashi and end at the next morning. It is not allowed to eat rice, pulses, garlic and onion during the fast.
Key Rituals and Beliefs:
- Fasting: Devotees observe a strict fast, refraining from eating grains, beans, and certain vegetables. Some people may only consume fruits, milk, or water.
- Vishnu Worship: Special prayers like Jai Ekadashi Mata , bhajans, and rituals are performed in honor of Lord Vishnu. Devotees read or listen to the Pausha Putrada Ekadashi Vrat Katha (the story associated with this Ekadashi).
- Night Vigil: Some devotees stay awake all night, chanting Vishnu’s names or reading scriptures like the Bhagavad Gita.
- Breaking the Fast: The fast is broken the next day, Dwadashi, after performing prayers.
This Ekadashi is considered particularly auspicious for those who wish to have children, and it is believed that observing it with faith and devotion can fulfill this desire.
The mythological significance of Pausha Putrada Ekadashi is rooted in Hindu scriptures, particularly the Padma Puran. According to the legend associated with this Ekadashi, the story revolves around King Suketuman and his devoted queen Shaibya.
Here’s the mythological event associated with Pausha Putrada Ekadashi:
- King Suketuman’s Despair: King Suketuman was a righteous and benevolent ruler, but he and his queen, Shaibya, were childless. Despite their prayers and offerings to various deities, they remained without offspring, which caused them great sorrow and despair. Both were worried that after their death, their souls would not get peace without performing Shradh.
- Sage Vasishtha’s Advice: Seeking a solution to their plight, King Suketuman approached the sage Vasishtha, known for his wisdom and spiritual knowledge. The sage advised the king and queen to observe the fast of Pausha Putrada Ekadashi with utmost devotion and sincerity.
- Observance of Ekadashi Vrat: Following Sage Vasishtha’s advice, King Suketuman and Queen Shaibya observed the fast of Pausha Putrada Ekadashi with complete devotion. They abstained from food and water throughout the day and spent the time in prayers, meditation, and worship of Lord Vishnu.
- Divine Blessings: Pleased by their unwavering devotion and piety, Lord Vishnu appeared before King Suketuman and Queen Shaibya at the end of Ekadashi day. He blessed them with the boon of a son who would be virtuous, wise, and a worthy successor to the throne.
- Birth of a Son: Following the blessings of Lord Vishnu, Queen Shaibya soon conceived and gave birth to a noble son. The child was named Dharmangada and grew up to be a righteous ruler who brought prosperity and happiness to the kingdom.
- Eternal Significance: The legend of Pausha Putrada Ekadashi emphasizes the power of sincere devotion and fasting in invoking the blessings of Lord Vishnu. It serves as a reminder of the importance of faith, piety, and righteous conduct in one’s spiritual journey.
This mythological event underscores the significance of Pausha Putrada Ekadashi as a day of hope, devotion, and blessings for couples aspiring for parenthood. It continues to be observed with reverence and faith by devotees seeking the divine grace of Lord Vishnu for the fulfillment of their desire for children.
पौष पुत्रदा एकादशी व्रत की कहानी
श्रीकृष्ण के चरणों में अर्जुन ने प्रणाम कर श्रद्धापूर्वक प्रार्थना की- “हे मधुसूदन! अब आप पौष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी के माहात्म्य को बताने की कृपा करें। इस एकादशी का क्या नाम हैं? इसका क्या विधान है! इस दिन किस देवता का पूजन किया जाता है? कृपा कर मेरे इन सभी प्रश्नों का विस्तार सहित उत्तर दें।”
अर्जुन के प्रश्न पर श्रीकृष्ण ने कहा- “हे अर्जुन! पौष मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम पुत्रदा है। इसका पूजन पूर्व में बताई गई विधि अनुसार ही करना चाहिए। इस उपवास में भगवान श्रीहरि की पूजा करनी चाहिए। संसार में पुत्रदा एकादशी उपवास के समान अन्य दूसरा व्रत नहीं है। इसके पुण्य से प्राणी तपस्वी, विद्वान और धनवान बनता है। इस एकादशी से सम्बंधित जो कथा प्रचलित है, उसे मैं तुम्हें सुनाता हूँ, श्रद्धापूर्वक श्रवण करो-
प्राचीन समय में भद्रावती नगरी में सुकेतुमान नाम का एक राजा राज्य करता था। उसके कोई संतान नहीं थी। उसकी पत्नी का नाम शैव्या था। उस पुत्रहीन राजा के मन में इस बात की बड़ी चिंता थी कि उसके बाद उसे और उसके पूर्वजों को कौन पिंडदान देगा। उसके पितर भी व्यथित हो पिंड लेते थे कि सुकेतुमान के बाद हमें कौन पिंड देगा। इधर राजा भी बंधु-बांधव, राज्य, हाथी, घोड़ा आदि से संतुष्ट नहीं था। उसका एकमात्र कारण पुत्रहीन होना था। बिना पुत्र के पितरों और देवताओं से उऋण नहीं हो सकते। इस तरह राजा रात-दिन इसी चिंता में घुला करता था। इस चिंता के कारण एक दिन वह इतना दुखी हो गया कि उसके मन में अपने शरीर को त्याग देने की इच्छा उत्पन्न हो गई, किंतु वह सोचने लगा कि आत्महत्या करना तो महापाप है, अतः उसने इस विचार को मन से निकाल दिया। एक दिन इन्हीं विचारों में डूबा हुआ वह घोड़े पर सवार होकर वन को चल दिया।
घोड़े पर सवार राजा वन, पक्षियों और वृक्षों को देखने लगा। उसने वन में देखा कि मृग, बाघ, सिंह, बंदर आदि विचरण कर रहे हैं। हाथी शिशुओं और हथिनियों के बीच में विचर रहा है। उस वन में राजा ने देखा कि कहीं तो सियार कर्कश शब्द निकाल रहे हैं और कहीं मोर अपने परिवार के साथ नाच रहे हैं। वन के दृश्यों को देखकर राजा और ज्यादा दुखी हो गया कि उसके पुत्र क्यों नहीं हैं? इसी सोच-विचार में दोपहर हो गई। वह सोचने लगा कि मैंने अनेक यज्ञ किए हैं और ब्राह्मणों को स्वादिष्ट भोजन कराया है, किंतु फिर भी मुझे यह दुख क्यों मिल रहा है? आखिर इसका कारण क्या है? अपनी व्यथा किससे कहूं? कौन मेरी व्यथा का समाधान कर सकता है?
अपने विचारों में खोए राजा को प्यास लगी। वह पानी की तलाश में आगे बढ़ा। कुछ दूर जाने पर उसे एक सरोवर मिला। उस सरोवर में कमल पुष्प खिले हुए थे। सारस, हंस, घड़ियाल आदि जल-क्रीड़ा में मग्न थे। सरोवर के चारों तरफ ऋषियों के आश्रम बने हुए थे। अचानक राजा के दाहिने अंग फड़कने लगे। इसे शुभ शगुन समझकर राजा मन में प्रसन्न होता हुआ घोड़े से नीचे उतरा और सरोवर के किनारे बैठे हुए ऋषियों को प्रणाम करके उनके सामने बैठ गया।
ऋषिवर बोले – ‘हे राजन! हम तुमसे अति प्रसन्न हैं। तुम्हारी जो इच्छा है, हमसे कहो।’
राजा ने प्रश्न किया – ‘हे विप्रो! आप कौन हैं? और किसलिए यहां रह रहे हैं?’
ऋषि बोले – ‘राजन! आज पुत्र की इच्छा करने वाले को श्रेष्ठ पुत्र प्रदान करने वाली पुत्रदा एकादशी है। आज से पांच दिन बाद माघ स्नान है और हम सब इस सरोवर में स्नान करने आए हैं।’
ऋषियों की बात सुन राजा ने कहा – ‘हे मुनियो! मेरा भी कोई पुत्र नहीं है, यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो कृपा कर मुझे एक पुत्र का वरदान वीजिए।’
ऋषि बोले – ‘हे राजन! आज पुत्रदा एकादशी है। आप इसका उपवास करें। भगवान श्रीहरि की अनुकम्पा से आपके घर अवश्य ही पुत्र होगा।’
राजा ने मुनि के वचनों के अनुसार उस दिन उपवास किया और द्वादशी को व्रत का पारण किया और ऋषियों को प्रणाम करके वापस अपनी नगरी आ गया। भगवान श्रीहरि की कृपा से कुछ दिनों बाद ही रानी ने गर्भ धारण किया और नौ माह के पश्चात उसके एक तेजस्वी पुत्र उत्पन्न हुआ। यह राजकुमार बड़ा होने पर अत्यंत वीर, धनवान, यशस्वी और प्रजापालक बना।”
श्रीकृष्ण ने कहा- “हे पाण्डुनंदन! पुत्र की प्राप्ति के लिए पुत्रदा एकादशी का उपवास करना चाहिए पुत्र प्राप्ति के लिए इससे बढ़कर दूसरा कोई व्रत नहीं है। जो कोई व्यक्ति पुत्रदा एकादशी के माहात्म्य को पढ़ता व श्रवण करता है तथा विधानानुसार इसका उपवास करता है, उसे सर्वगुण सम्पन्न पुत्ररत्न की प्राप्ति होती है। श्रीहरि की अनुकम्पा से वह मनुष्य मोक्ष को प्राप्त करता है।”
कथा-सार
पुत्र का न होना बड़ा ही दुर्भाग्यपूर्ण है, उससे भी दुर्भाग्यपूर्ण है पुत्र का कुपुत्र होना, अतः सर्वगुण सम्पन्न और सुपुत्र पाना बड़ा ही दुर्लभ है। ऐसा पुत्र उन्हें ही प्राप्त होता है, जिन्हें साधुजनों का आशीर्वाद प्राप्त हो तथा जिनके मन में भगवान की भक्ति हो। इस कलियुग में सुयोग्य पुत्र प्राप्ति का श्रेष्ठ साधन पुत्रदा एकादशी का व्रत ही है।