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Ahoi Ashtami

Ahoi Ashtami, also known as Ahoi Aathe, is a Hindu festival celebrated by mothers for the well-being and longevity of their children. It is observed on the eighth day (Ashtami) of the Kartik month (October-November) in the Hindu calendar, usually on the eighth day before Diwali.

The central figure in the Ahoi Ashtami celebration is Ahoi Mata, who is believed to be a manifestation of the Hindu goddess Mahalakshmi. Mothers observe a fast (vrat) on this day for the well-being and prosperity of their children, especially sons. Ahoi Mata is considered a protector of children.

Mothers traditionally observe a day-long fast, which begins before sunrise and ends after sighting the stars in the evening. During the fast, mothers abstain from food and water, dedicating the day to prayers and rituals for the welfare of their children.

Ahoi Ashtami involves various rituals and pujas. Mothers create an image or painting of Ahoi Mata on a wall and decorate it with bright colors. They draw the image of seven sons and one daughter under the goddess, representing the children. The fasting mother, other family members, and neighbors participate in the evening puja, offering prayers and seeking blessings.

The fast is traditionally broken after sighting the stars in the evening. The mother receives water and food from the elders in the family.

Ahoi Ashtami is a regional festival and is particularly celebrated in Northern India. It is observed with great devotion and is an occasion for family gatherings and prayers for the well-being of children. The rituals and traditions associated with Ahoi Ashtami may vary in different regions and communities.

 


 

अहोई अष्टमी व्रत की पूजा विधि

प्रातः काल (सूर्योदयः से पहले) सुबह जल्दी उठ कर स्नान करने के बाद कुछ फल इत्यादि खाते हैं।
मंदिर जाना अथवा घर के मंदिर में पूजा की जाती है।
पूरे दिन निर्जल व्रत रखना भी प्रचलित है।
शाम के समय, बच्चों के साथ बैठकर अहोई अष्टमी माता की पूजा करते हैं।
दीवार पर अहोई अष्टमी माता की तस्वीर बनाते हैं अथवा एक के कैलेंडर लगाते हैं।
शाम को तारा निकलते ही उसको जल व खाना अर्पण करके ही व्रत खोलते हैं।

अहोई अष्टमी पूजा सामग्री

पूजा सामग्री – चावल, रोली, मोली अथवा धूप की नाल

अहोई अष्टमी की कहानी

अहोई अष्टमी पर्व से सम्बंधित विभिन्न पौराणिक कथाएँ प्रचलित हैं। इन कथाओं को पूजा करते समय स्त्रियाँ एक दूसरे को कथाएँ सुनाती हैं। अहोई अष्टमी से सम्बंधित प्रचलित दो कथाएँ निम्नलिखित हैं –

कथा 1

एक साहूकार था, जिसके सात बेटे-बहुएँ और एक बेटी थी। कात्रिक के महीने में अष्टमी को अपने मकान की लिपाई पुताई करने के लिए सातो बहुएं अपनी इकलौती ननद के साथ जंगल से मिट्टी लेने गई। जंगल में मिटटी खोदने की जगह एक स्याहु की मांद थी। मिट्टी खोदते समय ननद के कुदाल से स्याहु के बच्चे को लग गई और वह तुरंत मर गया। इससे स्याहु माता बहुत नाराज हो गई और बोली की मैं तेरी कोख बांधूगी। ननद बहुत डर गई, वो अपनी सातो भाभियों से बोली तुममें से कोई अपनी कोख बंधवा लो। तब छह भाभियों से अपनी कोख बंधवाने से मन कर दिया परन्तु छोटी बहु सोचने लगी अगर मैंने भी अपनी कोख नहीं बंधवाई तो सासु माँ बहुत नाराज होगी। यह सोचकर छोटी भाभी ने ननद के बदले अपनी कोख बंधवा ली।

इसके बाद छोटी बहु को जो बच्चा होता वह सात दिन का होकर मर जाता। एक दिन उसने पंडित जी से पूछा, मेरी संतान सातवे दिन मर जाती हैं इसके लिए मैं क्या करुँ ? तब पंडित ने कहा तुम सुरही गाय की सेवा करो , सुरही गाय स्याहु माता की बहन हैं। वह तेरी कोख खुलवा देगी।तब ही तेरा बच्चा जियेगा।

अब वह बहुत जल्दी उठ कर चुपचाप सुरही गाय के नीचे साफ़-सफाई कर आती। सुरही गाय एक पैर से लंगड़ी थी। गऊ माता सोचने लगी मेरे नीचे कौन साफ़-सफाई करता है। एक दिन गऊ माता सवेरे जल्दी उठ गई तो देखती है, कि साहूकार के बेटे की बहु उसके नीचे साफ़-सफाई कर रही है।

गऊ माता साहूकार की बहु से बोली बता क्या मांगती है ? साहूकार की बहु बोली स्याहु माता तुम्हारी बहिन है और उसने मेरी कोख बांध रखी है। आप मेरी कोख खुलवा दो। गऊ माता साहूकार की बहु को अपनी बहिन के पास लेकर चल दी।

रस्ते में कड़ी धूप थी, वे दोनों एक पेड़ के नीचे बैठ गई। थोड़ी देर में एक साँप आया और उसी पेड़ पर गरुड़ पंखनी के बच्चे को डसने लगा, साहूकार की बहू ने साँप ढाल के नीचे दबा दिया और बच्चे को बच्चा लिया। थोड़ी देर मे गरुड़ पंखनी आयी और वहां खून देख कर साहूकार की बहु को चोंच मरने लगी। साहूकार की बहु ने उससे कहा की मैंने तेरे बच्चे को नहीं मारा, मैंने तो तेरे बच्चे की जान उस साँप से बचाई हैं जो तेरे बच्चे को डसने आया था।

यह सुन कर गरुड़ पंखनी बोली मांग क्या मांगती है। वह बोली सात समुन्दर पार स्याहु माता रहती है, हमें तुम उसके पास पहुंचा दो। गरुड़ पंखनी ने दोनों को अपनी पीठ पर बैठा कर स्याहु माता के पास पहुंचा दिया। स्याहु माता उनको देख कर बोली आ बहिन बहुत दिनों में आयी है।

बाते करते समय स्याहु माता ने बीच में कहा, बहन मेरे सिर में बहुत जुएं पड़ गई हैं। सुरही के कहने पर साहूकार की बहु ने उसके सिर से सारी जुएं निकाल दी।

इस पर स्याहु माता ने प्रसन्न हो कर कहा, तूने मेरे सिर में बहुत सलाई फेरी हैं इसीलिए तेरे सात बेटे और सात बहुएँ होंगी। इस पर साहूकार की बहु बोली मेरे तो एक भी बेटा नहीं तो सात कहाँ से होंगे। स्याहु माता बोली वचन दिया है, वचन से फिरू तो धोबी की कुंड पर कंकड़ी होऊ।

साहूकार की बहु बोली मेरी कोख तो तुम्हारे पास बंद पड़ी हैं। यह सुन स्याहु माता बोली “तूने तो मुझे ठग लिया”। मैं तेरी कोख खोलती तो नहीं, पर अब खोलनी पड़ेगी। जा तेरे घर पर तुझे सात बेटे और सात बहुएँ मिलेगी। तू जाकर सात उद्यापन करना , सात अहोई बना कर, सात कढ़ाई करना। वह लौट कर घर आई तो देखा कि सात बेटे और सात बहुएँ बैठी हैं। उसने सात अहोई बनाई , सात उद्यापन किये, सात कड़ाही करी।

शाम के समय जेठानिया आपस में कहने लगी, कि जल्दी से धोक -पूजा कर लो। कही छोटी बहु बच्चों को याद करके रोने न लगे। थोड़ी देर में उन्होंने अपने बच्चों से कहा- अपनी चाची के घर जा कर देखो कि आज वो अभी तक रोइ क्यों नहीं ?

बच्चों ने आकर कहा चाची तो अहोई बना रही हैं, खूब उद्यापन हो रहा है। ये सुनते ही जेठानिया दौड़ी -दौड़ी वहां आयी, और कहने लगी तूने कोख कैसे खुलवाई ?

उसने कहा तुमने तो खोख बंधवाई नहीं थी, सो मैंने कोख बंधवा ली थी। परन्तु अब स्याहु माता ने दया करके मेरी कोख खोल दी हैं।

हे स्याहु माता ! जैसे आपने साहूकार के बेटे की बहु की कोख खोली, वैसे ही हमारी बहुओं की कोख खोलती जाना

अहोई अष्टमी का अर्थ एक प्रकार से यह भी होता है “अनहोनी को होनी बनाना” जैसे साहूकार की छोटी बहू ने कर दिखाया।

अहोई माता की जय !

कथा 2

प्राचीन काल में किसी नगर में एक साहूकार रहता था। उसके सात लड़के थे। दीपावली से पहले साहूकार की स्त्री घर की लीपापोती हेतु मिट्टी लेने खदान में गई और कुदाल से मिट्टी खोदने लगी।दैवयोग से उसी जगह एक सेह की मांद थी। सहसा उस स्त्री के हाथ से कुदाल बच्चे को लग गई जिससे सेह का बच्चा तत्काल मर गया। अपने हाथ से हुई हत्या को लेकर साहूकार की पत्नी को बहुत दुख हुआ परन्तु अब क्या हो सकता था! वह शोकाकुल पश्चाताप करती हुई अपने घर लौट आई।

कुछ दिनों बाद उसका बेटे का निधन हो गया। फिर अकस्मात् दूसरा, तीसरा और इस प्रकार वर्ष भर में उसके सभी बेटे मर गए। महिला अत्यंत व्यथित रहने लगी। एक दिन उसने अपने आस-पड़ोस की महिलाओं को विलाप करते हुए बताया कि उसने जानबूझ कर कभी कोई पाप नहीं किया। हाँ, एक बार खदान में मिट्टी खोदते हुए अंजाने में उसके हाथों एक सेह के बच्चे की हत्या अवश्य हुई है और तत्पश्चात उसके सातों बेटों की मृत्यु हो गई।

यह सुनकर पास-पड़ोस की वृद्ध औरतों ने साहूकार की पत्नी को दिलासा देते हुए कहा कि यह बात बताकर तुमने जो पश्चाताप किया है उससे तुम्हारा आधा पाप नष्ट हो गया है। तुम उसी अष्टमी को भगवती माता की शरण लेकर सेह और सेह के बच्चों का चित्र बनाकर उनकी अराधना करो और क्षमा-याचना करो। ईश्वर की कृपा से तुम्हारा पाप धुल जाएगा।

साहूकार की पत्नी ने वृद्ध महिलाओं की बात मानकर कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को उपवास व पूजा-याचना की। वह हर वर्ष नियमित रूप से ऐसा करने लगी। तत्पश्चात् उसे सात पुत्र रत्नों की प्राप्ती हुई। तभी से अहोई व्रत की परम्परा प्रचलित हो गई।

अहोई माता की जय !

 


 

अहोई अष्टमी की आरती

ॐ जय अहोई माता मइया जय अहोई माता ।
तुमको निसदिन ध्यावत, हरी विष्णु धाता ॥ १ ॥
॥ ॐ जय अहोई माता ॥
ब्रम्हाणी रुद्राणी कमला तू ही है जग दाता ।
जो कोई तुमको ध्यावत नित मंगल पाता ॥ २ ॥
॥ ॐ जय अहोई माता ॥
तू ही पाताल बसंती तू ही है सुख दाता ।
कर्म प्रभाव प्रकाशक जगनिधि से त्राता ॥ ३ ॥
॥ मइया ॐ जय अहोई माता ॥
जिस घर थारो वास वही में गुण आता ।
कर न सके सोई कर ले मन नहीं घबराता ॥ ४ ॥
॥ ॐ जय अहोई माता ॥
तुम बिन सुख न होवे पुत्र न कोई पता ।
खान पान का वैभव तुम बिन नहीं आता ॥ ५ ॥
॥ ॐ जय अहोई माता ॥
शुभ गुण सुन्दर युक्ता क्षीर निधि जाता ।
रतन चतुर्दश तोंकू कोई नहीं पाता ॥ ६ ॥
।। ॐ जय अहोई माता ।।
श्री अहोई माँ की आरती जो कोई गाता ।
उर उमंग अति उपजे पाप उतर जाता ॥ ७ ॥
॥ ॐ जय अहोई माता ॥

अहोई अष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ ।

 


 

॥ Aarti Ahoi Mata Ki ॥

Om Jai Ahoi Mata Maiya Jai Ahoi Mata।
Tumko Nisdin Dhyavat Hari Vishnu Vidhata॥ 1 ॥
॥ Om Jai Ahoi Mata॥
Brahamni Rudrani Kamla Tu He Hai Jag Data।
Jo Koi Tumko Dhyavat Nit Mangal Pata॥ 2 ॥
॥ Om Jai Ahoi Mata॥
Tu He Pataal Basanti Tu He Hai Sukh Data।
Karma Prabhav Prakashak Jagniddhi Se Trata॥ 3 ॥
॥ Maiya Om Jai Ahoi Mata॥
Jis Ghar Tharo Vaas Wahi Mein Gunna Aata।
Kar Na Sake Soi Kar Le Mann Nahi Ghabrata॥ 4 ॥
॥ Om Jai Ahoi Mata॥
Tum Bin Sukh Na Hovay Putra Na Koi Pata।
Khan-Paan Ka Vaibhav Tum Bin Nahi Aata॥ 5 ॥
॥ Om Jai Ahoi Mata॥
Subh Gun Sundar Yukta Sheer Niddhi Jata।
Ratan Chaturdarsha Toku Koi Nahi Pata॥ 6 ॥
॥ Om Jai Ahoi Mata॥
Shree Ahoi Maa Ki Aarti Jo Koi Gata।
Ur Umang Ati Upjay Paap Utar Jata॥ 7 ॥
॥ Om Jai Ahoi Mata॥

Happy Ahoi Ashtami to you and your family!

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