Satyanarayan Katha is one of the most popular stories that worship Lord Vishnu. Satya = Truth and Narayan = Vishnu. It is an acknowledgement and a recognition of absolute truth. Read it as a story. Celebrate it as a ceremony.
Satyanarayan Katha is a well-known pooja from Hindu culture that worships the god Vishnu for wealth and prosperity. Satya means ‘truth’ and Narayana means ‘the highest being’ so Satyanarayana means ‘the highest being who is a literal epitome of truth’.
Satyanarayana Pooja is a very simple pooja and highly performed in most parts of India. As per mythological stories, rishi Narada muni observed poverty and pain on earth due to malnutrition, and he went to Lord Vishnu for the solution. Then lord Vishnu instructed Satyanarayana pooja to pass on earth for prosperity, happiness, wealth, and health.
This pooja can last for up to 3 hours, and it involves a sacred altar with decorations and picture of Lord Vishnu. Usually, people invite maximum friends, neighbors, and relatives to listen to this Katha and receive lord Vishnu’s blessings.
A priest will carry out the Satyanarayana pooja, and in the end, Prashad has to be served consist of a traditional sweet dish called Sheera and other vegetables and fruits. The whole environment becomes pure and divine because of this pooja, and it helps people to receive abundance from god.
People in India perform this pooja on various occasions. For example, they perform when something good has happened to them or to worship God for their desire. It is a simple and very much accessible pooja that works for gratitude, guidance, prayer, and divine celebration.
People who perform Satyanarayana Katha at their place with utmost faith and gratitude surely receive blessings and happiness from Lord Vishnu. One can always read it in a form of story below, but having friends and family gather around and listen to it with full respect and devotion from a priest is pure bliss.
श्री सत्यनारायण कथा : शास्त्रों में बताया गया है कि सत्यनारायण व्रत कथा का पाठ करने से व्यक्ति को हजार यज्ञ करने के बराबर पुण्य फल की प्राप्ति होती है। सत्यनारायण भगवान व्रत कथा में भगवान विष्णु के सत्य स्वरूप के बारे में बताया गया है। इस व्रत का पाठ करने से घर में सुख समृद्धि का वास होता है और भगवान विष्णु की कृपा बना रहती है।
विधि
सत्यनारायण व्रतकथा पुस्तिका के प्रथम अध्याय में यह बताया गया है कि सत्यनारायण भगवान की पूजा कैसे की जाए। संक्षेप में यह विधि निम्नलिखित है-
जो व्यक्ति सत्यनारायण की पूजा का संकल्प लेते हैं उन्हें दिन भर व्रत रखना चाहिए। पूजन स्थल को गाय के गोबर से पवित्र करके वहां एक अल्पना बनाएँ और उस पर पूजा की चौकी रखें। इस चौकी के चारों पाये के पास केले का वृक्ष लगाएँ। इस चौकी पर शालिग्राम या ठाकुर जी या श्री सत्यनारायण की प्रतिमा स्थापित करें। पूजा करते समय सबसे पहले गणपति की पूजा करें फिर इन्द्रादि दशदिक्पाल की और क्रमश: पंच लोकपाल, सीता सहित राम, लक्ष्मण की, राधा कृष्ण की। इनकी पूजा के पश्चात ठाकुर जी व सत्यनारायण की पूजा करें। इसके बाद लक्ष्मी माता की और अन्त में महादेव और ब्रह्मा जी की पूजा करें।
पूजा के बाद सभी देवों की आरती करें और चरणामृत लेकर प्रसाद वितरण करे।
कथा
सत्यनारायण व्रत कथा का पहला अध्याय
एक समय की बात है नैषिरण्य तीर्थ में शौनिकादि, 88,000 ऋषियों ने श्री सूतजी से पूछा हे प्रभु! इस कलियुग में वेद विद्या रहित मनुष्यों को प्रभु भक्ति किस प्रकार मिल सकती है? तथा उनका उद्धार कैसे होगा? हे मुनि श्रेष्ठ ! कोई ऐसा तप बताइए जिससे थोड़े समय में ही पुण्य मिलें और मनवांछित फल भी मिल जाए।
इस प्रकार की कथा सुनने की हम इच्छा रखते हैं। सर्व शास्त्रों के ज्ञाता सूतजी बोले: हे वैष्णवों में पूज्य ! आप सभी ने प्राणियों के हित की बात पूछी है इसलिए मैं एक ऐसे श्रेष्ठ व्रत को आप लोगों को बताऊंगा जिसे नारद जी ने लक्ष्मीनारायण जी से पूछा था और लक्ष्मीपति ने मनिश्रेष्ठ नारद जी से कहा था। आप सब इसे ध्यान से सुनिए |
एक समय की बात है, योगीराज नारदजी दूसरों के हित की इच्छा लिए अनेकों लोको में घूमते हुए मृत्युलोक में आ पहुंचे। यहां उन्होंने अनेक योनियों में जन्मे प्राय: सभी मनुष्यों को अपने कर्मों द्वारा अनेकों दुखों से पीड़ित देखा। उनका दुख देख नारदजी सोचने लगे कि कैसा यत्न किया जाए जिसके करने से निश्चित रुप से मानव के दुखों का अंत हो जाए। इसी विचार पर मनन करते हुए वह विष्णुलोक में गए। वहाँ वह देवों के ईश नारायण की स्तुति करने लगे जिनके हाथों में शंख, चक्र, गदा और पद्म थे, गले में वरमाला पहने हुए थे।
स्तुति करते हुए नारद जी बोले, हे भगवान! आप अत्यंत शक्ति से संपन्न हैं, मन तथा वाणी भी आपको नहीं पा सकती हैं। आपका आदि, मध्य तथा अंत नहीं है। निर्गुण स्वरुप सृष्टि के कारण भक्तों के दुख को दूर करने वाले है, आपको मेरा नमस्कार है। नारदजी की स्तुति सुन विष्णु भगवान बोले, हे मुनिश्रेष्ठ! आपके मन में क्या बात है? आप किस काम के लिए पधारे हैं? उसे नि:संकोच कहो।
इस पर नारद मुनि बोले कि मृत्युलोक में अनेक योनियों में जन्मे मनुष्य अपने कर्मों के द्वारा अनेको दुख से दुखी हो रहे हैं। हे नाथ! आप मुझ पर दया रखते हैं तो बताइए कि वो मनुष्य थोड़े प्रयास से ही अपने दुखों से कैसे छुटकारा पा सकते है।
श्रीहरि बोले, हे नारद! मनुष्यों की भलाई के लिए तुमने बहुत अच्छी बात पूछी है। जिसके करने से मनुष्य मोह से छूट जाता है, वह बात मैं कहता हूं, उसे सुनो। स्वर्ग लोक व मृत्युलोक दोनों में एक दुर्लभ उत्तम व्रत है जो पुण्य देने वाला है। आज प्रेमवश होकर मैं उसे तुमसे कहता हूं। श्रीसत्यनारायण भगवान का यह व्रत अच्छी तरह विधानपूर्वक करके मनुष्य तुरंत ही यहाँ सुख भोग कर, मरने पर मोक्ष पाता है।
श्रीहरि के वचन सुन नारदजी बोले कि उस व्रत का फल क्या है? और उसका विधान क्या है? यह व्रत किसने किया था? इस व्रत को किस दिन करना चाहिए? सभी कुछ विस्तार से बताएं। नारद की बात सुनकर श्रीहरि बोले, दुख व शोक को दूर करने वाला यह सभी स्थानों पर विजय दिलाने वाला है। मानव को भक्ति व श्रद्धा के साथ शाम को श्रीसत्यनारायण की पूजा धर्म परायण होकर ब्राह्मणों व बंधुओं के साथ करनी चाहिए। भक्ति भाव से ही नैवेद्य, केले का फल, घी, दूध और गेहूँ का आटा सवाया लें। गेहूं के स्थान पर साठी का आटा, शक्कर तथा गुड़ लेकर व सभी भक्षण योग्य पदार्थो को मिलाकर भगवान का भोग लगाएँ।
ब्राह्मणों सहित बंधु-बांधवों को भी भोजन कराएं, उसके बाद स्वयं भोजन करें। भजन, कीर्तन के साथ भगवान की भक्ति में लीन हो जाएं। इस तरह से सत्य नारायण भगवान का यह व्रत करने पर मनुष्य की सारी इच्छाएँ निश्चित रुप से पूरी होती हैं। इस कलि काल अर्थात कलियुग में मृत्युलोक में मोक्ष का यही एक सरल उपाय बताया गया है।
॥श्री सत्यनारायण व्रत कथा का पहला अध्याय संपूर्ण॥ बोलिए श्री सत्यनारायण भगवान की जय।
सत्यनारायण भगवान की व्रत कथा का दूसरा अध्याय
सूत जी बोले, हे ऋषियों ! जिसने पहले समय में इस व्रत को किया था उसका इतिहास कहता हूं, ध्यान से सुनो! सुंदर काशीपुरी नगरी में एक अत्यंत निर्धन ब्राह्मण रहता था। भूख प्यास से परेशान वह धरती पर घूमता रहता था।
ब्राह्मणों से प्रेम से प्रेम करने वाले भगवान ने एक दिन ब्राह्मण का वेश धारण कर उसके पास जाकर पूछा: हे विप्र! नित्य दुखी होकर तुम पृथ्वी पर क्यूों घूमते हो? दीन ब्राह्मण बोला, मैं निर्धन ब्राह्मण हूं। भिक्षा के लिए धरती पर घूमता हूं। हे भगवान! यदि आप इसका कोई उपाय जानते हो तो बताइए। वृद्ध ब्राह्मण कहता है कि सत्यनारायण भगवान मनोवांछित फल देने वाले हैं इसलिए तुम उनका पूजन करो। इसे करने से मनुष्य सभी दुखों से मुक्त हो जाता है।
वृद्ध ब्राह्मण बनकर आए सत्यनारायण भगवान उस निर्धन ब्राह्मण को व्रत का सारा विधान बताकर अन्तर्धान हो गए। ब्राह्मण मन ही मन सोचने लगा कि जिस व्रत को वृद्ध ब्राह्मण करने को कह गया है मैं उसे जरुर करूंगा। यह निश्चय करने के बाद उसे रात में नींद नहीं आई। वह सवेरे उठकर सत्यनारायण भगवान के व्रत का निश्चय कर भिक्षा के लिए चला गया। उस दिन निर्धन ब्राह्मण को भिक्षा में बहुत धन मिला। जिससे उसने बंधु-बांधवों के साथ मिलकर श्री सत्यनारायण भगवान का व्रत संपन्न किया। भगवान सत्यनारायण का व्रत संपन्न करने के बाद वह निर्धन ब्राह्मण सभी दुखों से छूट गया और अनेक प्रकार की संपत्तियों से युक्त हो गया।
उसी समय से यह ब्राह्मण हर माह इस व्रत को करने लगा। इस तरह से सत्यनारायण भगवान के व्रत को जो मनुष्य करेगा वह सभी प्रकार के पापों से छूटकर मोक्ष को प्राप्त होगा। जो मनुष्य इस व्रत को करेगा वह भी सभी दुखों से मुक्त हो जाएगा।
सूतजी बोले कि इस तरह से नारद जी से नारायण जी का कहा हुआ श्रीसत्यनारायण व्रत को मैने तुमसे कहा। हे विप्रो ! मैं अब और क्या कहूँ? ऋषि बोले, हे मुनिवर ! संसार में उस विप्र से सुनकर और किस-किस ने इस व्रत को किया, हम सब इस बात को सुनना चाहते हैं। इसके लिए हमारे मन में श्रद्धा का भाव है।
सूतजी बोले, हे मुनियों! जिस-जिस ने इस व्रत को किया है, वे सब सुनो ! एक समय वही विप्र धन व ऐश्वर्य के अनुसार अपने बंधु-बांधवों के साथ इस व्रत को करने को तैयार हुआ। उसी समय एक लकड़ी बेचने वाला बूढ़ा आदमी आया और लकड़ियां बाहर रखकर अंदर ब्राह्मण के घर में गया। प्यास से दुखी वह लकड़हारा उनको व्रत करते देख विप्र को नमस्कार कर पूछने लगा कि आप यह क्या कर रहे है तो उन्होंने बताया कि व्रत कर रहा हूं। तथा इसे करने से क्या फल मिलेगा? कृपया मुझे भी बताएं। ब्राह्मण ने कहा कि सब मनोकामनाओं को पूरा करने वाला यह सत्यनारायण भगवान का व्रत है। इनकी कृपा से ही मेरे घर में धन धान्य आदि की वृद्धि हुई है।
विप्र से सत्यनारायण व्रत या के बारे में जानकर लकड़हारा बहुत प्रसन्न हुआ। चरणामृत लेकर व प्रसाद खाने के बाद वह अपने घर गया। लकड़हारे ने अपने मन में संकल्प किया कि आज लकड़ी बेचने से जो धन मिलेगा उसी से श्रीसत्यनारायण भगवान का उत्तम व्रत करूंगा। मन में इस विचार को ले बूढ़ा आदमी सिर पर लकड़ियां रख उस नगर में बेचने गया जहां धनी लोग ज्यादा रहते थे। उस नगर में उसे अपनी लकड़ियों का दाम पहले से चार गुना अधिक मिलता है।
बूढ़ा प्रसन्नता के साथ दाम लेकर केले, शक्कर, घी, दूध, दही और गेहूं का आटा ले और सत्यनारायण भगवान के व्रत की अन्य सामग्रियां लेकर अपने घर गया। वहां उसने अपने बंधु-बांधवों को बुलाकर विधि विधान से सत्यनारायण भगवान का पूजन और व्रत किया। इस व्रत के प्रभाव से वह बूढ़ा लकड़हारा धन पुत्र आदि से युक्त होकर संसार के समस्त सुख भोग अंत काल में बैकुंठ धाम चला गया।
॥श्री सत्यनारायण व्रत कथा का दूसरा अध्याय संपूर्ण॥ बोलिए श्री सत्यनारायण भगवान की जय।
सत्यनारायण भगवान की व्रत कथा का तीसरा अध्याय
सूतजी बोले, हे श्रेष्ठ मुनियों, अब आगे की कथा कहता हूं। पहले समय में उल्कामुख नाम का एक बुद्धिमान राजा था। वह सत्यवक्ता और जितेन्द्रिय था। प्रतिदिन देव स्थानों पर जाता और निर्धनों को धन देकर उनके कष्ट दूर करता था। उसकी पत्नी कमल के समान मुख वाली तथा सती साध्वी थी। भद्रशीला नदी के तट पर उन दोनो ने श्रीसत्यनारायण भगवान का व्रत किया। उसी समय साधु नाम का एक वैश्य आया। उसके पास व्यापार करने के लिए बहुत सा धन भी था। राजा को व्रत करते देखकर वह विनय के साथ पूछने लगा, हे राजन ! भक्तिभाव से पूर्ण होकर आप यह क्या कर रहे हैं? मैं सुनने की इच्छा रखता हूँ तो आप मुझे बताएं।
राजा बोला, हे साधु! अपने बंधु-बांधवों के साथ पुत्रादि की प्राप्ति के लिए एक महाशक्तिमान श्रीसत्यनारायण भगवान का व्रत व पूजन कर रहा हूं। राजा के वचन सुन साधु आदर से बोला, हे राजन! मुझे इस व्रत का सारा विधान कहिए। आपके कथनानुसार मैं भी इस व्रत को करुँगा। मेरी भी संतान नहीं है और इस व्रत को करने से निश्चित रुप से मुझे संतान की प्राप्ति होगी। राजा से व्रत का सारा विधान सुन, व्यापार से निवृत हो वह अपने घर गया।
साधु वैश्य ने अपनी पत्नी को संतान देने वाले इस व्रत का वर्णन कह सुनाया और कहा कि जब मेरी संतान होगी तब मैं इस व्रत को करुंगा। साधु ने इस तरह के वचन अपनी पत्नी लीलावती से कहे। एक दिन लीलावती पति के साथ आनन्दित हो सांसारिक धर्म में प्रवृत होकर सत्यनारायण भगवान की कृपा से गर्भवती हो गई। दसवें महीने में उसके गर्भ से एक सुंदर कन्या ने जन्म लिया। दिनों दिन वह ऐसे बढ़ने लगी जैसे कि शुक्ल पक्ष का चंद्रमा बढ़ता है। माता-पिता ने अपनी कन्या का नाम कलावती रखा।
एक दिन लीलावती ने मीठे शब्दों में अपने पति को याद दिलाया कि आपने सत्यनारायण भगवान के जिस व्रत को करने का संकल्प किया था उसे करने का समय आ गया है, आप इस व्रत को करिये। साधु बोला कि हे प्रिये! इस व्रत को मैं उसके विवाह पर करुँगा। इस प्रकार अपनी पत्नी को आश्वासन देकर वह नगर को चला गया। कलावती पिता के घर में रह वृद्धि को प्राप्त हो गई।
साधु ने एक बार नगर में अपनी कन्या को सखियों के साथ देखा तो तुरंत ही दूत को बुलाया और कहा कि मेरी कन्या के योग्य वर देख कर आओ। साधु की बात सुनकर दूत कंचन नगर में पहुंचा और वहाँ देखभाल कर लड़की के सुयोग्य वाणिक पुत्र को ले आया। सुयोग्य लड़के को देख साधु ने बंधु-बांधवों को बुलाकर अपनी पुत्री का विवाह कर दिया लेकिन दुर्भाग्य की बात ये कि साधु ने अभी भी श्रीसत्यनारायण भगवान का व्रत नहीं किया।
इस पर श्री भगवान क्रोधित हो गए और श्राप दिया कि साधु को अत्यधिक दुख मिले। अपने कार्य में कुशल साधु बनिया जमाई को लेकर समुद्र के पास स्थित होकर रत्नासारपुर नगर में गया। वहां जाकर दामाद-ससुर दोनों मिलकर चन्द्रकेतु राजा के नगर में व्यापार करने लगे। एक दिन भगवान सत्यनारायण की माया से एक चोर राजा का धन चुराकर भाग रहा था। उसने राजा के सिपाहियों को अपना पीछा करते देख चुराया हुआ धन वहां रख दिया जहां साधु अपने जमाई के साथ ठहरा हुआ था। राजा के सिपाहियों ने साधु वैश्य के पास राजा का धन पड़ा देखा तो वह ससुर-जमाई दोनों को बांधकर प्रसन्नता से राजा के पास ले गए और कहा कि उन दोनों चोरों हम पकड़ लाएं हैं, आप आगे की कार्यवाही की आज्ञा दें।
राजा की आज्ञा से उन दोनों को कठिन कारावास में डाल दिया गया और उनका सारा धन भी उनसे छीन लिया गया। श्रीसत्यनारायण भगवान से श्राप से साधु की पत्नी भी बहुत दुखी हुई। घर में जो धन रखा था उसे चोर चुरा ले गए। शारीरिक तथा मानसिक पीड़ा व भूख प्यास से अति दुखी हो अन्न की चिन्ता में कलावती के ब्राह्मण के घर गई। वहां उसने श्रीसत्यनारायण भगवान का व्रत होते देखा फिर कथा भी सुनी वह प्रसाद ग्रहण कर वह रात को घर वापिस आई। माता के कलावती से पूछा कि हे पुत्री अब तक तुम कहां थी? तेरे मन में क्या है?
कलावती ने अपनी माता से कहा, हे माता ! मैंने एक ब्राह्मण के घर में श्रीसत्यनारायण भगवान का व्रत देखा है। कन्या के वचन सुन लीलावती भगवान के पूजन की तैयारी करने लगी। लीलावती ने परिवार व बंधुओं सहित सत्यनारायण भगवान का पूजन किया और उनसे वर मांगा कि मेरे पति तथा जमाई शीघ्र घर आ जाएं। साथ ही यह भी प्रार्थना की कि हम सब का अपराध क्षमा करें।
श्रीसत्यनारायण भगवान इस व्रत से संतुष्ट हो गए और राजा चन्द्रकेतु को सपने में दर्शन दे कहा कि: हे राजन! तुम उन दोनो वैश्यों को छोड़ दो और तुमने उनका जो धन लिया है उसे वापस कर दो। अगर ऐसा नहीं किया तो मैं तुम्हारा धन राज्य व संतान सभी को नष्ट कर दूंगा। राजा को यह सब कहकर वह अन्तर्धान हो गए।
प्रात:काल सभा में राजा ने अपना सपना सुनाया फिर बोले कि बणिक पुत्रों को कैद से मुक्त कर सभा में लाओ। दोनो ने आते ही राजा को प्रणाम किया। राजा मीठी वाणी में बोला, हे महानुभावों ! भाग्यवश ऎसा कठिन दुख तुम्हें प्राप्त हुआ है लेकिन अब तुम्हें कोई भय नहीं है। ऎसा कह राजा ने उन दोनों को नए वस्त्राभूषण भी पहनाए और जितना धन उनका लिया था उससे दुगुना धन वापिस कर दिया। दोनो वैश्य अपने घर को चल दिए।
॥श्री सत्यनारायण व्रत कथा का तीसरा अध्याय संपूर्ण॥ बोलिए श्री सत्यनारायण भगवान की जय।
सत्यनारायण भगवान की व्रत कथा का चौथा अध्याय
सूतजी बोले, वैश्य ने मंगलाचार कर अपनी यात्रा आरंभ की और अपने नगर की ओर चल दिए। उनके थोड़ी दूर जाने पर एक दण्डी वेशधारी श्रीसत्यनारायण ने उनसे पूछा, हे साधु तेरी नाव में क्या है? अभिवाणी वणिक हंसता हुआ बोला: हे दण्डी ! आप क्यों पूछते हो? क्या धन लेने की इच्छा है? मेरी नाव में तो बेल व पत्ते भरे हुए हैं। वैश्य के कठोर वचन सुन भगवान बोले: तुम्हारा वचन सत्य हो! दण्डी ऐसे वचन कह वहां से दूर चले गए। कुछ दूर जाकर समुद्र के किनारे बैठ गए। दण्डी के जाने के बाद साधु वैश्य ने नित्य क्रिया के पश्चात नाव को ऊंची उठते देखकर अचंभा माना और नाव में बेल-पत्ते आदि देख वह मूर्छित हो जमीन पर गिर पड़ा।
मूर्छा खुलने पर वह अत्यंत शोक में डूब गया तब उसका दामाद बोला कि आप शोक ना मनाएँ, यह दण्डी का शाप है इसलिए हमें उनकी शरण में जाना चाहिए तभी हमारी मनोकामना पूरी होगी। दामाद की बात सुनकर वह दण्डी के पास पहुंचा और अत्यंत भक्तिभाव नमस्कार कर के बोला, मैंने आपसे जो जो असत्य वचन कहे थे उनके लिए मुझे क्षमा दें, ऐसा कह कहकर महान शोकातुर हो रोने लगा तब दण्डी भगवान बोले, हे वणिक पुत्र ! मेरी आज्ञा से बार-बार तुम्हें दुख प्राप्त हुआ है।
तू मेरी पूजा से विमुख हुआ। साधु बोला, हे भगवान ! आपकी माया से ब्रह्मा आदि देवता भी आपके रूप को नहीं जानते तब मैं अज्ञानी कैसे जान सकता हूँ। आप प्रसन्न होइए, अब मैं सामर्थ्य के अनुसार आपकी पूजा करूंगा। मेरी रक्षा करो और पहले के समान नौका में धन भर दो।
साधु वैश्य के भक्तिपूर्वक वचन सुनकर भगवान प्रसन्न हो गए और उसकी इच्छानुसार वरदान देकर अन्तर्धान हो गए। ससुर-जमाई जब नाव पर आए तो नाव धन से भरी हुई थी फिर वहीं अपने अन्य साथियों के साथ सत्यनारायण भगवान का पूजन कर अपने नगर को चल दिए। जब नगर के नजदीक पहुंचे तो दूत को घर पर खबर करने के लिए भेज दिया। दूत साधु की पत्नी को प्रणाम कर कहता है कि मालिक अपने दामाद सहित नगर के निकट आ गए हैं।
दूत की बात सुन साधु की पत्नी लीलावती ने बड़े हर्ष के साथ सत्यनारायण भगवान का पूजन कर अपनी पुत्री कलावती से कहा कि मैं अपने पति के दर्शन को जाती हूं तू कार्य पूर्ण कर शीघ्र आ जा! माता के ऎसे वचन सुन कलावती जल्दी में प्रसाद छोड़ अपने पति के पास चली गई। प्रसाद की अवज्ञा के कारण श्रीसत्यनारायण भगवान रुष्ट हो गए और नाव सहित उसके पति को पानी में डुबो दिया। कलावती अपने पति को वहाँ ना पाकर रोती हुई जमीन पर गिर गई।
नौका को डूबा हुआ देख व कन्या को रोता देख साधु दुखी होकर बोला कि हे प्रभु ! मुझसे तथा मेरे परिवार से जो भूल हुई है उसे क्षमा करें।साधु के दीन वचन सुनकर श्रीसत्यनारायण भगवान प्रसन्न हो गए और आकाशवाणी हुई: हे साधु! तेरी कन्या मेरे प्रसाद को छोड़कर आई है इसलिए उसका पति अदृश्य हो गया है। यदि वह घर जाकर प्रसाद खाकर लौटती है तो इसे इसका पति अवश्य मिलेगा। ऐसी आकाशवाणी सुन कलावती घर पहुंचकर प्रसाद खाती है और फिर आकर अपने पति के दर्शन करती है। उसके बाद साधु अपने बंधु-बाँधवों सहित श्रीसत्यनारायण भगवान का विधि-विधान से पूजन करता है। इस लोक का सुख भोग वह अंत में स्वर्ग जाता है।
॥श्री सत्यनारायण व्रत कथा का चौथा अध्याय संपूर्ण॥ बोलिए श्री सत्यनारायण भगवान की जय।
सत्यनारायण भगवान की व्रत कथा का पांचवा अध्याय
सूतजी बोले, हे ऋषियों ! मैं और भी एक कथा सुनाता हूं, उसे भी ध्यानपूर्वक सुनो! प्रजापालन में लीन तुंगध्वज नाम का एक राजा था। उसने भी भगवान का प्रसाद त्याग कर बहुत ही दुख सान किया। एक बार वन में जाकर वन्य पशुओं को मारकर वह बड़ के पेड़ के नीचे आया। वहाँ उसने ग्वालों को भक्ति-भाव से अपने बंधुओं सहित सत्यनारायण भगवान का पूजन करते देखा। अभिमानवश राजा ने उन्हें देखकर भी पूजा स्थान में नहीं गया और ना ही उसने भगवान को नमस्कार किया। ग्वालों ने राजा को प्रसाद दिया लेकिन उसने वह प्रसाद नहीं खाया और प्रसाद को वहीं छोड़ वह अपने नगर को चला गया।
जब वह नगर में पहुंचा तो वहाँ सबकुछ तहस-नहस हुआ पाया तो वह शीघ्र ही समझ गया कि यह सब भगवान ने ही किया है। वह दुबारा ग्वालों के पास पहुंचा और विधि पूर्वक पूजा कर के प्रसाद खाया तो श्रीसत्यनारायण भगवान की कृपा से सब कुछ पहले जैसा हो गया। दीर्घकाल तक सुख भोगने के बाद मरणोपरांत उसे स्वर्गलोक की प्राप्ति हुई।
जो मनुष्य परम दुर्लभ इस व्रत को करेगा तो भगवान सत्यनारायण की अनुकंपा से उसे धन-धान्य की प्राप्ति होगी। निर्धन धनी हो जाता है और भयमुक्त हो जीवन जीता है। संतान हीन मनुष्य को संतान सुख मिलता है और सारे मनोरथ पूर्ण होने पर मानव अंतकाल में बैकुंठधाम को जाता है।
सूतजी बोले, जिन्होंने पहले इस व्रत को किया है अब उनके दूसरे जन्म की कथा कहता हूं। वृद्ध शतानन्द ब्राह्मण ने सुदामा का जन्म लेकर मोक्ष की प्राप्ति की। लकड़हारे ने अगले जन्म में निषाद बनकर मोक्ष प्राप्त किया। उल्कामुख नाम का राजा दशरथ होकर बैकुंठ को गए। साधु नाम के वैश्य ने मोरध्वज बनकर अपने पुत्र को आरे से चीरकर मोक्ष पाया। महाराज तुंगध्वज ने स्वयंभू होकर भगवान में भक्तियुक्त हो कर्म कर मोक्ष पाया।
॥श्री सत्यनारायण व्रत कथा का पांचवा अध्याय संपूर्ण॥ बोलिए श्री सत्यनारायण भगवान की जय।
Chapter 1
First, let’s pray to Lord Ganesha.
Long long ago, Sage Shownakadik, who lived in a forest called Naimisharanya, asked a question to Narada Muni. “Oh, Narada, what kind of pooja (ritual) will allow one or all of his wishes? Please tell me.”
The same question was asked by Narada Muni to Lord Vishnu. I will tell you the answer that Lord Vishnu gave to Narada. Please listen with devotion.
One day, Narada Muni was roaming around the world when he came across people suffering from all sorts of problems. He was wondering, how they could solve their problems and be happy. So, he went to Heaven to pray for Lord Vishnu. “Oh Lord Vishnu, you have the knowledge of everything. You are all-powerful. You create life, maintain it and destroy it. You are the origin of everything. I bow to you.”
Lord Vishnu was pleased with Narada’s prayer. He asked Narada, “What’s on your mind? How can I help you?” Narada asked him, ” There are so many people suffering around the world. Can you please tell me a pooja that will make people happy and allow them to have their wishes come true?”
Lord Vishnu was very pleased that Narada asked a question about helping everybody and not just himself. He said, ” I will tell you a pooja that nobody knows. This is a very powerful pooja and anybody who does this pooja with devotion, frees himself from all the worries and becomes happy”. Narada asked Lord Vishnu to give him all the details about the pooja, such as how to do this pooja, when to do this, etc.
Lord Vishnu said, “This powerful pooja destroys all worries and sorrows. It makes one happy and prosperous. it makes you succeed in all good causes. it keeps you healthy. However, you have to do this pooja with devotion to God”.
“You should take one and a quarter measure of milk, sugar, butter, bananas, and cream of wheat to make the Prasad. The exact details of how you make the prasad or how you make the pooja are unimportant. What is more important is that you pray from your heart. After doing the pooja, you offer the Prasad to your friends and family and listen to the Shree Satyanarayana Story (Shree Satya Narayan is the God of truth) with devotion”.
“If you pray to God from your heart and do the Shree Satya Narayan pooja with devotion, your problems will be solved. This simple pooja will help everybody to end their suffering”.
This ends the First Chapter of the Shree Satya Narayan Story.
Shree Satya Narayan Maharaj Ki Jay (Glory to Lord Shree Satya Narayan).
Chapter 2
Lord Vishnu said to Narada, ” Let me tell you a story about a poor man who used to live in the village called Sunder”.
One day, an old man was wandering around looking for some food. He was hungry, tired, and thirsty. Lord Vishnu took pity on him. He came to earth in a form of an old man and asked the poor man, “Why are you roaming around like this? What is bothering you?” The poor man replied, “I am very poor. I have to roam around begging so that I can get some food. Can you tell me anything I can do to get out of this misery?” Lord Vishnu in the form of an old man, told him about the Shree Satya Narayan pooja. He advised about the powers of this pooja to bring him happiness and urged him to do this pooja. After that, the old man vanished.
The poor man felt restless. He could barely sleep that night. He made up his mind to do the pooja and went about his usual routine to beg for some food. That day, people gave him a lot of money. He used that money to do the Shree Satya Narayan pooja along with his family. Since then, that poor man started earning good money. he started doing the pooja every month and gained happiness. He got rid of his past sins and went to Heaven.
Narada said to all sages that anyone who does this pooja with devotion gets happiness. Moreover, anyone who listens to this pooja done by someone else also gets happiness. Narada said, ” Let me tell you a story about a woodcutter who listened to this story and became prosperous”.
One day, a woodcutter was walking with his wood on his head. It was a hot day and he was very thirsty. he stopped by a house to get a drink and he saw that the people in the house doing the Shree Satya Narayan pooja. He rested at their house and listened to the pooja with devotion. He ate the Prasad and went to the village to sell the wood. That day he was able to sell twice as much wood. He realized that it was due to him listening to the Shree Satya Narayan pooja. He bought the articles and groceries for doing the pooja from that money. He invited his family and friends and did the Shree Satya Narayan pooja.
Since that time, he became a very rich merchant. All his worries were gone and his wishes were fulfilled.
This ends the second chapter of the Shree Satya Narayan pooja.
Shree Satya Narayan Maharaj Ki Jay (Glory to Lord Shree Satya Narayan).
Chapter 3
Let me tell you another story about a King named Sarvabhauma. This King was a brilliant man who believed in God. He always believed in the truth and never lied to anyone. Every day, he used to go to the temple and donate money to poor people. His wife, Sundervadana, was extremely beautiful.
One day, the King and the Queen were doing the Shree Satya Narayan pooja on the banks of the river. A merchant named Sadhu Vani was going in a boat on the river. He was going on a business trip with a lot of money. He saw the King and the Queen doing the pooja and brought his boat to the banks of the river to find out what was going on.
Sadhu Vani politely asked the King,” I am impressed by your devotion and I am interested in knowing about this pooja. Please tell me all about it”.
The King replied.” O’ Brother, I am doing the pooja of the most powerful Lord Vishnu. His pooja, called Shree Satya Narayan pooja, has the power to fulfill all your dreams”. Sadhu Vani urged the King to tell him more about the pooja. Sadhu Vani was childless and he thought that this pooja will make his dream about having a child come true.
After listening to the details, Sadhu Vani canceled his travel plans and returned home. He told his wife Lilavati, all about the Shree Satya Narayan pooja. He vowed that he will do the pooja as soon as he is blessed with a child.
Low and behold, Lilavati became pregnant with the blessing of God and delivered a beautiful baby girl. Sadhu Vani and Lilavati named their daughter Kalavati. Her name meant that she is growing day by day like a crescent of the Moon.
After things had settled down, Lilavati reminded her husband about his vow to do the Shree Satya Narayan pooja as soon as they have a child. Sadhu Vani was too busy with his business and promised to do the pooja when they get Kalavati married.
Kalavati grew to become a very pretty charming young woman. Sadhu Vani started hunting for a suitable groom for his daughter. He enquires with his relatives and friends about a suitable young man. Finally, he found a smart and intelligent young man. Sadhu Vani got his daughter married with a lot of pomp and celebration. But again, he was too busy to do the pooja he had promised.
Lord Vishnu had waited for several years for Sadhu Vani to do this pooja. Now he ran out of patience and got angry with Sadhu Vani. He decided to teach a lesson to Sadhu Vani.
Sadhu Vani and his son-in-law became partners in business. They decided to travel together for a business to a town called Satnasarpur on the banks of the river Sindhu. A King named Chandraketu ruled this town.
One day, there was a robbery in the King’s palace. However, the palace guards found out about it and started chasing the thief. The thief got scared and dumped the loot where Sadhu Vani was staying. The palace guards found the loot and thought that Sadhu Vani and his son-in-law are thieves and arrested them. The palace guards took both of them to the King. Sadhu Vani pleaded that they were innocent and there was a terrible mistake. But due to Shree Satya Narayan curse, the King would not listen to them. he confiscated all belongings of Sadhu Vani and jailed him and his son-in-law.
Kalavati and Lilavati came upon extreme grief when they heard the plight of their husbands. Without any income from the business, they became poor and had to rely on begging to get any food.
One day, Kalavati was roaming around in search of food when she came across a family doing the Shree Satya Narayan pooja. She waited around out of curiosity. After she listened to pooja, ate the prasad, and headed home.
By the time she reached home, it was dark and her mother was sick with worry. She immediately asked Kalavati why was she so late coming home. Kalavati explained to her about the pooja. Lilavati immediately remembered Sadhu Vani’s promise and decided to do the pooja. She did the pooja with her meager means, but with complete devotion. She apologized to God and asked for forgiveness.
Lord Vishnu was pleased with Kalavati’s prayer. he decided to forgive Sadhu Vani. King Chandraketu had a dream that night in which Lord Vishnu told Sadhu Vani and his son-in-law were innocent and he should release them.
The next day, King Chandraketu ordered that Sadhu Vani and his son-in-law be released. He ordered his servants to give them proper bath and clothes. he also ordered his minister to give Sadhu Vani double the money that was taken away at the time of their jail sentence.
Sadhu Vani and his son-in-law bowed with respect to the King and decided to go back to their home.
This concludes the third chapter of the Shree Satya Narayan Katha.
Shree Satya Narayan Maharaj Ki Jay (Glory to Lord Shree Satya Narayan).
Chapter 4
Sadhu Vani and his son-in-law started their journey back home in a small boat. God decided to test their sincerity. The God took a disguise of a poor man and came to Sadhu Vani’s boat. He asked, “Oh merchant, what do you have in your boat?” Sadhu Vani was feeling too arrogant since getting all that gold from King Chandraketu. He did not want to be bothered by this poor man and ridiculed him. Sadhu Vani replied, “What do you think, we have some gold? There are only leaves and twigs in this boat”. The God in the disguise of the poor man said to Sadhu Vani, “Let that be true” and walked away a little distance and sat at the banks of the river.
Sadhu Vani finished his rest and went back to the boat. He was surprised to see the boat float way up. He peered into his boat and fainted when he saw his boat filled with leaves and twigs. As he awoke, he started crying. His son-in-law consoled him and advised him to apologize to the poor man for ridiculing him. Sadhu Vani learned his mistake and apologized to the poor man for lying and ridiculing him.
After Sadhu Vani prayed, God was satisfied that Sadhu Vani has learned from his mistakes. He told Sadhu Vani to go back to his boat. When Sadhu Vani went back, his boat was filled with gold as before and the poor man was nowhere to be seen.
After the incident, Sadhu Vani and his son-in-law proceeded towards their home. As they neared their town, he sent a messenger home to inform his wife and daughter that they were on their way.
Sadhu Vani’s wife Lilavati and daughter Kalavati were very happy to hear the good news that they were waiting to hear for so many months. Lilavati told Kalavi to do the Shree Satya Narayan pooja. But, Lilavati was too excited to wait for the pooja to finish. She proceeded to the river banks to greet Sadhu Vani.
Kalavati finished the pooja. But she too did not wait for the prasad as she was anxious to meet her husband.
God was very angry with Lilavati and Kalavati for leaving the pooja halfway through. He decided to teach them a lesson. As both women reached the riverbank, the boat carrying Sadhu Vani’s son-in-law sank in the river. As they witnessed this tragedy, Sadhu Vani, Lilavati and Kalavati were devastated with grief.
Sadhu Vani realized that this tragedy must have happened as a result of God’s anger. He prayed and promised that he will do the Shree Satya Narayan pooja with complete devotion. God decided to show mercy on them. There was a voice in the sky which told everybody. “Kalavati did not bother to eat her prasad resulting in my anger. If she goes back and completes the pooja and eats the prasad, everything will be fine”.
Grief-stricken Kalavati went back home and finished the pooja. She ate the prasad and went back to the river bank. to everybody’s surprise, the boat carrying her husband was floating again.
Sadhu Vani was convinced of the power of Shree Satya Narayan. He became a devotee of Shree Satya Narayan and every full moon day, he started doing the Shree Satya Narayan pooja. He lived happily ever after.
This concludes the fourth chapter of the Shree Satya Narayan Katha.
Shree Satya Narayan Maharaj Ki Jay (Glory to Lord Shree Satya Narayan).
Chapter 5
Long, long ago, there was a King named Angadhwaj. He took good care of all his citizens. one day, he had gone to the forest for hunting. While walking through the forest, he came across some poor shepherds who were doing the Shree Satya Narayan pooja.
The King was proud. He thought that it was below his dignity to go to these shepherds. After the pooja, the shepherds brought the prasad to the King. But he decided not to eat it and went back to his palace.
After this incident, all sorts of bad things started happening in King’s life and he became very unhappy. He finally realized that this bad spell must be because of his arrogance in not eating the prasad. He went back to the same place in the forest and did the pooja with devotion. This removed the bad spell from him and he became a successful king.
All these stores have told you how the Shree Satya Narayan pooja with devotion brings on happiness to the people.
This concludes the fifth and the last chapter of the Shree Satya Narayan Katha.
Shree Satya Narayan Maharaj Ki Jay (Glory to Lord Shree Satya Narayan).